कोरोनावायरस ने भारत को दो विकल्प दिए- शासन की शक्ति को बढ़ाएं या क्षमता
कोरोनोवायरस के कारण दुनिया में मची उथल-पुथल के बीच एकमात्र निश्चितता यही दिखती है कि सामाजिक व्यवस्था कायम रखने वाली संस्था के रूप में सर्वशक्तिमान राष्ट्र-राज्य का विचार पुनर्स्थापित हो रहा है।
कोरोनोवायरस के कारण दुनिया में मची उथल-पुथल के बीच एकमात्र निश्चितता यही दिखती है कि सामाजिक व्यवस्था कायम रखने वाली संस्था के रूप में सर्वशक्तिमान राष्ट्र-राज्य का विचार पुनर्स्थापित हो रहा है। दशकों के वैश्वीकरण, नव-उदारीकरण और निजीकरण के उपरांत संकट की इस घड़ी में दुनिया भर में लोग अपनी राष्ट्रीय सरकारों से उम्मीद रख रहे हैं और शासन के पूर्ण नियंत्रण के हित में अपनी नागरिक स्वतंत्रता का स्वैच्छिक बलिदान कर रहे हैं। यूरोप और अमेरिका से लेकर भारत तक, जनता अपनी सरकारों को प्रेरित कर रही है, वास्तव में मांग कर रही है कि वो निगरानी बढ़ाए और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर नज़र रखने की व्यवस्था विकसित करे। सामाजिक दूरी, सामाजिक अलगाव और लॉकडॉउन अब स्वीकार्य बातों में शामिल हो चुकी हैं। सरकार इस बारे में निर्देश देती है और लोग अनुपालन के लिए तैयार बैठे मिलते हैं।
ThePrint Hindi के अनुसार, विडंबना यह है कि अत्यधिक सरकारी नियंत्रण की ये मांग सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के प्रबंधन और मजबूत प्रतिक्रियात्मक रणनीतियां तैयार करने में सरकार की विफलता की वजह से उठी हैं। यूरोप के कई देश और अमेरिका शुरुआती दिनों में वायरस संक्रमण का परीक्षण करने और उसे रोकने में विफल रहे। जबकि बड़े पैमाने पर लॉकडाउन से बचने में फिलहाल सफल दक्षिण कोरिया और सिंगापुर ने परीक्षण और संक्रमित लोगों के संपर्कों को ढूंढ निकालने के आक्रामक अभियान में शासन की पूरी ताकत झोंककर वायरस के फैलाव को रोकने की कोशिश की। लेकिन इस तरीके का दूसरा पक्ष है जनता पर निगरानी की सरकार की क्षमता में वृद्धि।