अमेरिका में कोरोना अब छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचा, वैज्ञानिकों का आकलन- सितंबर तक देश में 22 लाख मौतें संभव
कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर पड़ा है। यहां कोरोना से 7 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। 34 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर पड़ा है। यहां कोरोना से 7 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। 34 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि यह स्थिति आगे और खराब हो सकती है। दरअसल, अमेरिका के बड़े शहरों से फैला यह वायरस अब छोटे इलाकों और गांवों में पहुंच गया है। ऐसे वक्त में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने देश में आम जनजीवन सामान्य करने के लिए गाइडलाइन जारी की है। राष्ट्रपति ने अनुमान लगाया है कि इससे जल्द ही सबकुछ सामान्य हो सकेगा। हालांकि यह साफ नहीं है कि यह संकट हमें कहां ले जाएगा।'
दैनिक भास्कर ने न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार कहा, कि ट्रम्प के बयान के बाद दो दर्जन से ज्यादा एक्सपर्ट्स को लगता है कि अमेरिकियों की सरलता जब एक बार फिर उत्पादन में लग जाएगी तो यह बोझ कम हो सकेगा। उन्होंने कहा कि सावधानी, बड़े स्तर पर टेस्टिंग, निगरानी और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पर्याप्त साधन असरदार होंगे। हालांकि अभी भी अगले साल के लिए अनुमान लगाना असंभव है।
पब्लिक हेल्थ, मेडिसिन, एपिडेमियोलॉजी और हिस्ट्री के एक्स्पर्ट्स ने इंटरव्यू में भविष्य की बात की है। वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल में प्रिवेंटिव मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर विलियम शैफनर के मुताबिक मुझे आशा है कि यह वायरस गर्मियों में कुछ कम हो जाएगा और वैक्सीन एक फौज की तरह आएगी। लेकिन मैं अपने इस आशावादी व्यव्हार को रोकने की कोशिश कर रहा हूं। हालांकि कई एक्स्पर्ट्स यह कह चुके हैं कि जैसे ही यह संकट खत्म होगा, आर्थिक व्यवस्था फिर से ठीक हो जाएगी। लेकिन तब तक इस दर्द से बचने का कोई उपाय नहीं है। यह वायरस कब खत्म होगा यह मेडिकल के साथ-साथ हमारे व्यवहार पर भी निर्भर करता है। अगर हम खुद को और करीबियों को बचा पाए तो हम ज्यादा लोग जिंदा बचेंगे। लेकिन अगर हमने इस वायरस को हल्के में लिया तो यह हमें खोज लेगा।'
वैक्सिनेशन के बजाए इलाज पर जोर
• एक्सपर्ट्स वैक्सीन से ज्यादा इलाज के लिए आशावादी हैं। उन्हें लगता है कि कॉन्वालेसेंट सिरम काम कर जाएगा। इस प्रक्रिया के मुताबिक, पुराने समय में बीमारी से उबर चुके लोगों का खून लिया जाता है। निकाले गए खून से एंटीबॉडीज छोड़कर सब हटा दिया जाता है और बाद में इंजेक्शन के जरिए यह मरीज को दिया जाता है।
• कोरोना के मामले में समस्या है कि ठीक हुए मरीजों की संख्या कम है। वैक्सिनेशन से पहले एंटीबॉडीज को घोड़ों और भेड़ों में तैयार किया जाता था। लेकिन इस प्रक्रिया में जानवरों के प्रोटीन के कारण एलर्जिक रिएक्शन जगह ले लेते थे।
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