भारत:एम्स के निदेशक बोले, कलंकित होने के भय से कोरोना की जांच को जल्दी सामने नहीं आते लोग
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डाक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कलंकित होने के
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डाक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कलंकित होने के डर से अधिकांश लोग कोरोना की जांच के लिए जल्दी सामने नहीं आते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज का इलाज देर से शुरू होने पर ही उसकी जान जाने की आशंका बढ़ जाती है। किसी मरीज में इस बीमारी की पहचान जल्द हो जाए तो उसके इलाज में आसानी रहती है।
भारतीय अखबार दैनिक जागरण के अनुसार गुरुवार को एक पत्रकार वार्ता में डाक्टर गुलेरिया ने कहा कि कोरोना के 80 फीसद मामलों में दवाओं से ही आसानी से इलाज हो जाता है। 15 फीसद मामलों में दवाओं के साथ आक्सीजन की जरूरत होती है। पांच फीसद मरीज ही ऐसे गंभीर होते हैं जिन्हें वेंटीलेटर और अन्य उपकरणों की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 की चपेट में आने वाले 90 से 95 फीसद मरीज ठीक हो जा रहे हैं। लेकिन जिन मामलों में देर हो जाती है उन्हें बचा पाना कठिन होता है।उन्होंने कहा कि देश के कई केंद्रों में कोरोना से गंभीर से पीडि़त मरीजों का प्लाज्मा थेरेपी से इलाज हो रहा। यह प्लाज्मा उन लोगों से लिया जाता है जो कोरोना को हराकर ठीक हो चुके हैं। यह बहुत सुखद है कि ठीक हो चुके बहुत से लोग खुद आगे आकर दूसरों की जान बचाने के लिए रक्तदान कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अभी कोरोना के मरीज बहुत चुनौतियों के साथ भेदभाव का सामना कर रहे हैं। यह ठीक नहीं है। कोरोना जैसे लक्षण होने पर भी लोग बहिष्कार के डर से जांच कराने सामने नहीं आ रहे। वे अस्पताल तभी पहुंचते हैं जब उनकी तबियत काफी बिगड़ चुकी होती है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि इनमें से बहुतेरे मरीजों को सिर्फ आक्सीजन देकर ही बचाया जा सकता है। जिन मरीजों को संक्रमण के साथ न्मोनिया होता है उन्हें खून में आक्सीजन की कमी से दिल का दौरा पड़ने अथवा न्यूरोलाजिकल समस्या हो सकती है। इसीलिए हम आक्सीजन सुविधा से लैस बेड का इंतजाम भी रखते हैं।
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