'ग्रामीण भारत: लॉकडाउन बढ़ाता शिक्षा चुनौतियां'
वैश्विक महामारी के कारण देशों में लॉकडाउन लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है, एक बार फिर से भारत सरकार ने लॉक डाउन को अगले 14 दिनों के लिए बढ़ा दिया है।
वैश्विक महामारी के कारण देशों में लॉकडाउन लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है, एक बार फिर से भारत सरकार ने लॉक डाउन को अगले 14 दिनों के लिए बढ़ा दिया है। ऐसे में जहां एक तरफ देश के नागरिकों के लिए आजीविका का संकट और गहरा गया है। वहीं दूसरी तरफ देश में शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती दिख रही है। भारत में शैक्षणिक संस्थान लगातार एक महीने से ज्यादा दिनों से बंद चल रहे हैं। स्कूल, कॉलेजों की परीक्षाएं भी संचालित नहीं हो पाई हैं। कुछ विश्वविद्यालयों और राज्य बोर्डों में परीक्षाएं आयोजित होने के बाद भी कॉपियों का मूल्यांकन नहीं हो पाने से परीक्षा परिणाम घोषित नहीं हो सके हैं, ऐसे में छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटका हुआ है।
प्रौद्योगिकी के इस दौर में शैक्षणिक कार्यक्रम किसी तरह प्रभावित ना हों | भारत सरकार लगातार इसके लिए प्रयासरत है। वर्तमान समय में शहरी क्षेत्रों विशेषकर महानगरों में स्कूल, कॉलेजों द्वारा ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएं संचालित कराई जा रही हैं। लेकिन समस्या इस बात की है कि शहरी क्षेत्रों में भी सिर्फ 13 प्रतिशत यूजर लैपटॉप, कंप्यूटर आदि जिसको शिक्षा ग्रहण करने का बेहतर डिजिटल माध्यम माना जाता है का प्रयोग करते हैं। लगभग 87 प्रतिशत यूजर अभी भी मोबाइल फोन के माध्यम से अपनी डिजिटल गतिविधियों को संचालित करते हैं | ऐसे में ज्यादा समय तक मोबाइल फोन पर शैक्षणिक गतिविधियों से स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। इस तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है आज शहरों में छोटे-छोटे बच्चे मोबाइल फोन पर अपने स्कूली होमवर्क को पूरा करते हैं। निश्चित रूप से इससे बच्चों के आंखों और मस्तिक पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि डिजिटल शिक्षा के नकारात्मक पहलुओं को छोड़ दें तो शहरों में निश्चित रूप से शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित नहीं हुई हैं।
यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो इस लॉक डाउन पीरियड में शैक्षिक गतिविधियों पर पूर्णतया विराम लग गया है | ग्रामीण में ज्यादातर कृषक आबादी होती है, जिसके पास एंड्राइड मोबाइल फोन की अनुपलब्धता रहती है। यदि किसी क्षेत्र विशेष में एक अनुपात में एंड्राइड फोन की उपलब्धता भी है तो मोबाइल नेटवर्क की समस्या सामने आ जाती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण परिवेश के अभिभावक और बच्चे अपने दैनिक जीवन में डिजिटल गतिविधियों का उस अनुपात में प्रयोग नहीं करते जिस अनुपात में शहरी क्षेत्रों में देखने को मिलता है। डिजिटल गतिविधियों में अरुचि के कारण एक नई समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई देती है।
संजीवनी टुडे के अनुसार, स्पष्ट है कि ग्रामीण परिवेश में इस लॉकडाउन पीरियड के दौरान शैक्षणिक कार्यक्रम शून्य हैं। ग्रामीण परिवेश में शैक्षणिक कार्यक्रमों को गति देने के लिए आवश्यकता है कि इन क्षेत्रों के स्कूलों को कुछ ही घंटों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए खोला जाए। ग्रामीण परिवेश में स्थानों की कमी नहीं होती इस वजह से सोशल डिस्टेंसिंग में कोई समस्या नहीं देखने को मिलेगी। वर्तमान परिस्थिति को ग्रामीण परिवेश में स्कूली छात्रों के माध्यम से स्वच्छता और महामारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सकारात्मक रूप में देखने की जरूरत है। यदि बच्चों के माध्यम से जागरूकता का प्रसार किया जाता है तो निश्चित रूप से बच्चे अभिभावकों को जागरूक करेंगे और यह श्रृंखला लगातार आगे बढ़ती रहेगी|