सकारात्मक भारत : लोगों की सेवा में जुटे पुलिस अधिकारी का 2 साल की बेटी के नाम ख़त
सकारात्मक भारत: 'जब मन रुंआसा होता है और आंसू नहीं आते हैं, शब्द कागज पर उतरते हैं और कविता बन जाते हैं।'
नई दिल्ली। सकारात्मक भारत: 'जब मन रुंआसा होता है और आंसू नहीं आते हैं, शब्द कागज पर उतरते हैं और कविता बन जाते हैं।' कोरोना लॉकडाउन में लोग घरों में बंद हैं। डॉक्टर देवदूत बनकर जान की बाजी लगाकर हमें बचाने में जुटे हैं। ऐसे में प्रशासन की आवाज बनकर जनता और कोरोना के बीच कोई खड़ा है तो वो है पुलिस। अक्सर पुलिस की छवि कुछ कारणों से बहुत बेहतर नहीं रही है, लेकिन पूरे देश में कोरोना, पुलिस को मसीहा सा दिखा रही है। कहीं वो भूखों को खाना खिला रहे हैं तो कहीं बीमार तक दवाइयां पहुंचा रहे हैं। ऐसे में लखनऊ के एक पुलिसवाले की अपनी लगभग दो साल की बेटी के लिए लिखी कविता वायरल हो रही है। स्वतंत्र कुमार सिंह जौनपुर के रहने वाले हैं, लखनऊ पुलिस में एसीपी हैं और अभी विभूतिखंड में मुस्तैद हैं।
जागरण के मुताबिक, स्वतंत्र न तो कवि हैं और न शायर, पर बेटी का बाप होना भी कवि होने से कम नहीं। पहली बार कोरोना के चक्कर में बेटी से दूर हुए। लॉकडाउन के दरम्यान जब पलायन होने लगा तो पैदल नजर आए परिवार के साथ दिखी हर छोटी बच्ची में अपनी बेटी को खोजने लगे। एक पुलिस वाले की वर्दी के अंदर धड़कने लगा पिता का दिल और स्वतंत्र कुमार ने कागज पर कुछ शब्द लिख डाले, जिन्हें पढ़ने वालों ने कविता कहा। इससे पहले कि स्वतंत्र से हुई बात आप तक पहुंचाएं, पहले वो कविता पढ़िए जो 7 अप्रैल को उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट की। कुछ ही घंटों में इस पोस्ट को सैंकड़ों शेयर मिले।
बेटी 'अक्षदा' को ख़त लिखना, 'वहीं कोरोना हार जाता है'
आज पंद्रहवें दिन भी तुम्हारा मुझसे दूर रहना - वहीं कोरोना हार जाता है।
रोज़ तुमको याद करते हुए वर्दी पहन कर डूयूटी पर जाना - वहीं कोरोना हार जाता है।
तुम्हारा वीडियो कॉल पर तुतलाते हुए 'डैडा' बोलना और अपने पास बुलाना - वहीं कोरोना हार जाता है।
बॉय बोलने पर तुम्हारा फ़ोन ना रखने के लिए नो-नो बोलना - वहीं कोरोना हार जाता है।
रात में या कभी-कभी दो रातों बाद घर आकर तुमको खोजना - वहीं कोरोना हार जाता है।
समाज के हर भूखे बच्चे में तुम्हारा अक्स देखकर थका शरीर और हारे मन का पुनः ऊर्जा से भर जाना - वहीं कोरोना हार जाता है।
इस उम्मीद में कि लोग लॉकडाउन का पूरी तरह पालन करेंगे, जिससे इसका 14 अप्रैल से आगे ना बढ़ना - वहीं कोरोना हार जाता है।
और अंत में इस विश्वास के साथ कि तुम्हारा दूसरा जन्मदिन (25 April) हम साथ में मनाएंगे - वहीं कोरोना हार जाता है।
अक्षदा सिंह स्वतंत्र की बेटी है, पूरे परिवार के साथ जौनपुर में है। 25 अप्रैल को अक्षदा दो साल की हो जाएगी। ये कविता सेना, डॉक्टर्स और पुलिस वालों के देश के प्रति समर्पण का पर्याय बन चली है। किस तरह परिवार से दूर रह कर देश की सेवा में ये तबका अपने आपको आहूत करने को तैयार रहता है। लॉकडाउन के दरम्यान अपने अनुभव साझा करते हुए स्वतंत्र कहते हैं कि पूरी दुनिया इस महामारी से जूझ रही है। लोग घर रहें, यही एक तरीका है समाज को बचाने का।
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