अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने को भारतीय सरकार 5 वर्षों में करेगी 102 लाख करोड़ का निवेश
बुनियादी ढांचे पर 102 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की सरकारी योजना बहुत शानदार है लेकिन उसकी राह में चुनौतियां भी कम नहीं। यदि इनसे पार लिया गया तो अर्थव्यवस्था की कायापलट होना तय है
एक ऐसे दौर में जब अर्थव्यवस्था सुस्ती की शिकार है तब सरकार द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचे पर अगले पांच वर्षो के दौरान 102 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं। नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन यानी एनआइपी पर गठित कार्यबल की रिपोर्ट पर सरकार ने यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इसमें संदेह नहीं कि यह कदम अर्थव्यवस्था को तेजी देने का काम करेगा, परंतु इसे मूर्त रूप देने की राह में तमाम चुनौतियां भी हैं।
जागरण के अनुसार, इसके तहत अगले पांच वर्षो के दौरान निवेश के लिए जो लक्ष्य तय किया है वह बीते छह वर्षो के दौरान बुनियादी ढांचे पर निवेश हुए 51 लाख करोड़ रुपये के दोगुने से भी अधिक है। प्रस्तावित योजना में केंद्र और राज्य सरकारों को 39-39 प्रतिशत तो शेष 22 प्रतिशत निवेश निजी क्षेत्र को करना होगा। इसके लिए ऊर्जा, सड़क निर्माण, रेलवे, शहरी विकास, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को चिन्हित किया है। हालांकि इन योजनाओं में से 42 प्रतिशत पर अमल शुरू भी हो चुका है, वहीं 19 प्रतिशत का खाका तैयार है जबकि 31 प्रतिशत योजनाओं की अभी तक संकल्पना ही सामने आई है।
जहां तक इससे होने वाले फायदों की बात है तो यह किसी से छिपा नहीं है कि देश का बुनियादी ढांचा अभी उस स्थिति में नहीं जो आर्थिक संभावनाओं को पूरी तरह भुनाने में मददगार हो सके। एक अनुमान के तहत वर्ष 2030 तक भारत को बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 4.5 टिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। इस कड़ी में सरकार की यह कोशिश न केवल कई क्षेत्रों को व्यापक लाभ पहुंचाएगी, बल्कि इससे मांग को भी सहारा मिलेगा। जैसे स्टील एवं सीमेंट जैसे बुनियादी उद्योगों में मांग जोर पकड़ेगी तो कुशल एवं अकुशल श्रमिकों के लिए भी रोजगार के तमाम अवसर सृजित होंगे। यानी तय है कि सरकार की यह पहल कई तरह से फलदायी होने जा रही है।
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