300 एकड़ में फैली है भारत की पहली प्राइवेट वाइल्डलाइफ सेंचुरी
भारत में कई वन्य जीव अभयारण्य मौजूद हैं, जो सरकार के अधीन है। लेकिन देश में 300 एकड़ में फैले एक प्राइवेट अभयारण्य के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं।
भारत में कई वन्य जीव अभयारण्य मौजूद हैं, जो सरकार के अधीन है। लेकिन देश में 300 एकड़ में फैले एक प्राइवेट अभयारण्य के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। कर्नाटक में वेस्टर्न घाट के ब्रह्मगिरी माउंटेन रेंज में स्थित सेव एनिमल्स इनिशियेटिव यानी साई (SAI) अभयारण्य संभवत: देश का पहला और अकेला प्राइवेट अभयारण्य है, जिसमें 300 से अधिक प्रजातियों के पक्षी और दुर्लभ वन्य जीव पाए जाते हैं।
एनबीटी के अनुसार, इस अभयारण्य की शुरुआत अनिल मल्होत्रा और उनकी पत्नी पामेला मल्होत्रा ने की थी। दून स्कूल से पढ़े अनिल अमेरिका में रहते थे और रियल एस्टेट व रेस्टोरेंट बिजनेस से जुड़े हुए थे। साल 1960 में अनिल की मुलाकात पामेला से न्यू जर्सी में हुई थी। मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे और जल्द ही शादी कर ली।
अनिल और पामेला जब अपने हनीमून के लिए हवाई पहुंचे तो यहां की प्राकृतिक खूबसूरती को देखकर मंत्रमुग्घ हो गए और हवाई में ही रहने लगे। हवाई में रहने के दौरान अनिल और पामेला ने प्रकृति की कीमत को जाना। साथ ही दोनों को यह भी समझ आया कि बढ़ते ग्लोबल वाॅर्मिंग के बीच जंगल के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
इसी बीच साल 1986 में अनिल के पिता की मौत हो गई। जब अनिल अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद जब हरिद्वार पहुंचे तो गंगा नदी की स्थिति देखकर डर गए और इसके लिए कुछ करने का फैसला किया। सबसे पहले अनिल और पामेला ने अभयारण्य के लिए उत्तर भारत में स्थान ढूंढने लगे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली, जिससे दोनों काफी निराश हो गए।
फिर साल 1991 में अपने एक दोस्त की सलाह पर अनिल और पामेला जमीन खरीदने कर्नाटक पहुंचे। यहां दोनों को 55 एकड़ की बेकार पड़ी हुई जमीन मिली। इस जमीन में पहले कॉफी की खेती होती थी लेकिन समय के साथ यह बंजर हो गई थी, जिसके कारण जमीन मालिक इसे बेचना चाहता था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अनिल और पामेला खुद माता-पिता नहीं बने।
दोस्त की मदद से अनिल और पामेला को वेस्टर्न घाट के नजदीक ब्रह्मगिरी माउंटेन रेंज में जमीन मिल गई। इसे खरीदने के लिए अनिल को हवाई में मौजूद अपनी प्रॉपर्टी को भी बेच दिया। इस इलाके में एक झरना भी मौजूद था, लेकिन पेस्टिसाइड्स के अधिक उपयोग के कारण इसका पानी दूषित हो चुका था। दोनों ने झरने के आसपास की जमीन भी खरीदनी शुरू कर दी।
यहां की जमीन में अच्छी पैदावार नहीं हो पाती थी। किसानों को अच्छी कीमत मिली तो उन्होंने अनिल को अपनी जमीन बेच दी। 300 एकड़ जमीन खरीदने के बाद अनिल और पामेला ने यहां कई तरह के पेड़-पौधे लगाए। पशु-पक्षियों को शिकारियों से बचाने के लिए वन विभाग से मदद ली। कई ट्रस्ट के लोगों ने भी दोनों को मदद की। दोनों की मेहनत और प्रकृति से अपने प्रेम के कारण आज यह जगह स्वर्ग से कम नहीं लगती है।
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