भारत: तेज आर्थिक विकास के लिए क्रांतिकारी साबित होगा बैंकों का विलय
केंद्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में बैंकों के विलय की घोषणा की थी और इस साल चार मार्च को केंद्रीय कैबिनेट ने 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को चार बैंकों में समेकित करने की मंजूरी दी है
केंद्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में बैंकों के विलय की घोषणा की थी और इस साल चार मार्च को केंद्रीय कैबिनेट ने 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को चार बैंकों में समेकित करने की मंजूरी दी है जो आज यानी एक अप्रैल से लागू होगा। बैंकिंग क्षेत्र में सबसे बड़े विलय से अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 12 रह जाएगी।
दैनिक जागरण के अनुसार, दरअसल घरेलू और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए बैंकिंग उद्योग में समेकन की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। निश्चय ही बड़ी इकाइयां बनाने का यह निर्णय भारतीय बैंकों को अर्थव्यवस्था की उच्च वित्त पोषण जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बना देगा और वैश्विक स्तर पर अधिग्रहण करने में मदद करेगा। बैंकिंग प्रणाली किसी भी अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा होती है और बैंक जनता के धन के ट्रस्टी होते हैं। इसलिए शेयर धारकों की तुलना में जमाकर्ता बैंकों के कल्याण में अधिक निहित होते हैं। एक बैंक का विफल होना एक निर्माण कंपनी की विफलता की तुलना में अधिक हानिकारक होता है। विलय और अधिग्रहण आज बाजार की रणनीति का अभिन्न अंग हैं। यह एक निश्चित भौगोलिक पैरामीटर तक सीमित नहीं है, न ही यह एक नया विकास है।
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद हमारे पास कोई भी बड़े आकार का बैंक नहीं है जो विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके। यह सच है कि विलय की प्रक्रिया एक बैंक को और मजबूती प्रदान करती है ताकि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा हो सके, लेकिन विलय के बाद नि:संदेह कुछ चुनौतियां भी आएंगी जिनमें एनपीए, कर्मचारियों का भावनात्मक असंतुलन, सांस्कृतिक परिवर्तन और कार्य संस्कृति का बेमेल होना प्रमुख हैं। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2040 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बैंकिंग हब हो सकता है। तेज आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत बैंकिंग प्रणाली महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार का यह फैसला बैंकिंग प्रणाली की व्यापकता और गुणवत्ता में निश्चित तौर पर सुधार लाएगा और इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
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