कोरोना के बाद फिर दोहराया जाएगा इतिहास, भारत और चीन में शुरू होगी आर्थिक वर्चस्व की जंग
एक पड़ोसी दूसरे का सरीखा बनने या उससे आगे निकलने की होड़ में प्रतिस्पर्धा के साथ प्रतिद्वंद्विता का भाव भी रखता है। एक ने कोई उपलब्धि हासिल की तो दूसरा भी उसे येन-केन प्रकारेण अपनी पहुंच में लाने को उतावला रहता है।
‘पड़ोसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए’, अगर ये कहावत देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर है, तो इसके बहुत वैधानिक-वैज्ञानिक आधार हैं। एक पड़ोसी दूसरे का सरीखा बनने या उससे आगे निकलने की होड़ में प्रतिस्पर्धा के साथ प्रतिद्वंद्विता का भाव भी रखता है। एक ने कोई उपलब्धि हासिल की तो दूसरा भी उसे येन-केन प्रकारेण अपनी पहुंच में लाने को उतावला रहता है। अपवाद को छोड़ दें, तो कई मायने में इस प्रवृत्ति से दोनों का कल्याण होता है, समृद्धि बढ़ती है। भारत और चीन के मामले में भी ऐसा ही होता दिखता है। 15वीं सदी से लेकर 19वीं सदी में भारत को ब्रिटेन द्वारा उपनिवेश बनाए जाने तक यह प्रवृत्ति कायम थी। 21वीं सदी में दोनों देश दुनिया की सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बने। समग्र रूप से भले ही चीन भारत से आगे निकल गया हो, लेकिन कोरोना से पूर्व ठहराव की ओर बढ़ रही चीनी अर्थव्यवस्था को देखते हुए दुनिया की टकटकी भारत की ओर लगी थी। कोरोना के बाद एक बार फिर इन दोनों पड़ोसियों के बीच आर्थिक वर्चस्व की जंग दुनिया के लिए कौतुक का विषय बनेगी।
भारतीय अखबार दैनिक जागरण के अनुसार, 16वीं सदी: भारत: लालसागर से होकर भारतीय सामान को यूरोप ले जाकर अरब व्यापारियों द्वारा बेचे जाने के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की विश्व की आय में 24.5 फीसद हिस्सेदारी थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर था। टेक्सटाइल्स, चीनी, मसाले, आम, कारपेट इत्यादि बेचकर यह सोना और चांदी खरीदकर अपना व्यापार संतुलन बनाए रखता था।
चीन: 1949 में साम्यवादी चीन के अस्तित्व से पहले देश में प्रमुख रूप से यार्न, कोयला, कच्चा तेल, कॉटन और अनाज का उत्पादन किया जाता था। माओ जेडांग ने देश को एक समाजवादी दिशा दी। 1980 में चीन ने शेनझेन में पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र गठित किया। 1986 में देश की ‘ओपेन डोर’ पॉलिसी ने विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। 1992 में ‘सोशलिस्ट मार्केट इकोनॉमी’ की स्थापना हुई। चीन दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ। 2001 में यह विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ। अमेरिका के बाद दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन की दुनिया की अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी करीब 16 फीसद हो चुकी है।